Tuesday, January 17, 2012

तेरी महक मेरे कपड़ो में रह जाती क्यों है

सपनो में आके तू सताती क्यों है,,
बाहों में आके दूर जाती क्यों,,
बस एक कशमकश में रात गुज़र जाती है,,
के तेरी महक मेरे कपड़ो में रह जाती क्यों है॥

तेरी यादें ही तो तुझे मेरे पास लाती है,,
तेरे गम के सिवा हर गम भुलाती है,,
गर वो रहती है मेरी आँखों में रौशनी की तरह,,
तो आंसुओ के साथ बे बह जाती क्यों है,,
बस एक कशमकश में रात गुज़र जाती है,,
के तेरी महक मेरे कपड़ो में रह जाती क्यों है,,

तेरी आँखों में खुद को पा जाता हु मै,,
देख के उनमे गम हो जाता हु मै,,
गर वो चाहती है मुझे खुद में बसाना,,
तो देख के मेरी आँखों में झुक जाती क्यों है,,
बस एक कशमकश में रात गुज़र जाती है,,
के तेरी महक मेरे कपड़ो में रह जाती क्यों है॥

No comments:

Post a Comment